कुलदेवी (kuldevi) dharm ki kahani:
ये कहानी (कुलदेवी | kuldevi) (dharm ki kahani) एक नास्तिक लड़के की है, जिसका नाम था राकेश लेकिन उसे अपना यह नाम पसंद नहीं था इसलिए उसने अपना नाम रॉकी रख लिया था | वह अपने गाँव से दूर एक शहर मे एक डांसिंग क्लब में काम करता था और हमेशा रंग भरी ज़िंदगी जीने में मसरूफ रहता था | सुबह से शाम तक उसका जीवन नाच गाना और शराब में ही व्यतीत होता था | एक बार की बात है | वह अपने काम से कुछ दिनों के लिए दूर होना चाहता था | दरअसल वह शोर शराबे वाली ज़िंदगी से बोर होने लगा था और वह अपने जीवन में कुछ बदलाव ढूँढ रहा था | लेकिन उसके गाँव के अलावा और कोई दूसरा स्थान नहीं था | जहाँ वह जा सके | तभी रॉकी अपने दादाजी के बने गाँव के घर में जाना तय करता है और कुछ दिन वही रहने का विचार बनाता है | दरअसल कुछ साल पहले रॉकी के माता पिता, इस दुनिया से जा चुके थे और वह अनाथ हो चुका था | उसका आगे पीछे कोई भी नहीं था | गाँव जाना भी उसे अच्छा नहीं लग रहा था | लेकिन मजबूरी वश वह गाँव के सफ़र पर निकल जाता है | जैसे ही वह गाँव की सीमारेखा में पहुँचता है | उसकी नज़र एक बरगद के पेड़ पर पड़ती है | जिसके चारों तरफ़ लोगों का हुजूम लगा होता है और गाँव के लोग बरगद के पेड़ को लाल कलर के चंदन से रंग रहे हैं | रॉकी को यह सब देखकर अजीब लगा | दरअसल वह इन सब मान्यताओं पर कोई यक़ीन नहीं करता था | उसे यह सब ढोंग लगता था | रॉकी गाँव के अंदर अपने घर की ओर बढ़ जाता है और अपने घर पहुँच कर देखता है कि घर की हालत बहुत जर्जर हो चुकी थी | लेकिन फिर भी वह रहने लायक तो था ही, इसलिए वह अंदर प्रवेश कर गया और साफ़ सफ़ाई करके रहने लायक व्यवस्था बनाने में जुट गया | गाँव में कुछ पड़ोसी इतने सालों के बाद इस घर को खुलते देखते हैं, तो उस लड़के से पूछ बैठते हैं | “बेटा तुम कौन हो” ? तब वह अपना परिचय देता है और कहता है, “यह मेरे दादा जी का घर था,” तभी वह अपने दादाजी का नाम बताता है | गाँव के बुजुर्ग लोग उसे पहचान लेते हैं और कहते हैं, “बेटा कोई आवश्यकता हो तो, हमें बताना और जब तक तुम्हें रहना है, आराम से रहो | रॉकी भी मुस्कुराते हुए जवाब देता है, “जी ज़रूर” लेकिन रॉकी का ध्यान अभी भी उस बरगद पर अटका होता है | तभी रॉकी एक बुजुर्ग व्यक्ति के पास जाकर बरगद के पेड़ से जुड़ी हुई बातों को पूछता है, तो बुजुर्ग व्यक्ति बताते हैं, कि वहाँ हमारी कुलदेवी है | जिसकी पूजा हम हर महीने करते हैं और उन्हीं की वजह से इस गाँव में ख़ुशहाली बनी रहती है |
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बुजुर्ग व्यक्ति की बात सुनकर रॉकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगता है और कहता है, “आज के ज़माने में भी आप लोग कितनी पिछड़ी हुई बातें कर रहे हो | आज कंप्यूटर का ज़माना आ चुका है | लेकिन आप लोगों को वही पुरानी रीति रिवाज़ों से फ़ुर्सत नहीं है | रॉकी की ऐसी अपमानजनक बातें सुनकर बुजुर्ग को ग़ुस्सा आ जाता है और वह रॉकी को बुरा भला कहता है |
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रॉकी भी बुजुर्ग की बात से नाराज़ होकर वहाँ से चला जाता है और क़सम खाता है, जब तक इस गाँव की इन सब रीति रिवाज़ों की पोल न खोल दूँ, तब तक यहाँ से नहीं जाऊँगा | अगले ही दिन शाम के वक़्त गाँव वाले अपनी अपनी फसलों की पूजा करने के लिए खेतों में जा रहे होते हैं और रॉकी भी उनके पीछे पीछे खेत तक पहुँच जाता है और छुपकर देखता रहता है| काफ़ी देर तक इंतज़ार करने के बाद गाँव के लोग पूजा करके वापस चले जाते हैं | लेकिन रॉकी के दिमाग़ में विरोध का ज्वालामुखी फूट पड़ा था और वह अपनी बात को सच साबित करने के लिए कुछ भी करने को तैयार था | तभी वह खेतों के किनारे दिये जलते देखता है और उसके दिमाग़ में आता है, क्यों न खेतों में आग लगा दिया जाए | फिर कौन उनकी फसलों की रक्षा करेगा | अब देखता हूँ कौन सी “कुलदेवी” आती है बचाने ? वह गाँव वालों के खेतों में आग लगा देता है और देखते ही देखते आग बढ़ने लगती है और रॉकी गाँव की तरफ़ तेज़ी से भागने लगता है, ताकि उसे कोई देख ना सके | लेकिन जैसे ही वह अपने घर के पास पहुँचता है | वह देखता है, उसका घर आग की लपटों से झुलस रहा है और गाँव के लोग पानी से आग बुझाने में लगे हुए हैं |
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उसे कुछ समझ नहीं आता, कि यह कैसे हुआ | तभी वह जाकर के वहाँ के लोगों से हड़बड़ाते हुए पूछता है, “यह आग कैसे लगी” ? तभी गाँव के लोग बताते हैं | “बेटा हम यहाँ बैठे थे, अचानक तुम्हारे घर के अंदर से धुआँ निकलने लगा | हमें लगा तुम अंदर खाना बना रहे हो, लेकिन कुछ देर में तुम्हारे पूरे घर में आग फैल चुकी थी और हम सभी लोग इसे बुझाने का प्रयास कर रहे हैं | लेकिन रॉकी को अपनी गलती का एहसास हो रहा था | उसे लगा, कि अब गाँव वालों को मै क्या कहूंगा ? तभी अगले ही पल एक किसान दौड़ता भागता आता है और कहता है, “अरे चलो, देखो किसी ने हमारी फसलों में आग लगाने की कोशिश की है और गाँव की भीड़ अपने खेतों की तरफ़ भागने लगती है और रॉकी भी पीछे पीछे जाता है ताकि किसी को इस पर श़क न हो | लेकिन जैसे ही रॉकी खेत के पास पहुँचता है, तो खेत पहले की तरह ही लहलहा रहे होते हैं और जो आग रॉकी ने लगायी थी | वह केवल फ़सल के किनारे तक ही बढ़ी थी | रॉकी समझ चुका था | ज़रूर यह कुलदेवी की महिमा है और वह उसी बुजुर्ग के पैरों में गिर जाता है, जिससे उसकी बहस हुई थी और सारी बात बता देता है | गाँव वाले भी उसे उसकी नादानी के लिए क्षमा कर देते हैं | अगले ही दिन रॉकी कुलदेवी के उसी बरगद के वृक्ष के नीचे जाकर गाँव की परंपरा के अनुसार पूजा करता है और हाथ जोड़कर कुल देवी से अपने अच्छे भविष्य की कामना करता है और इसी के साथ वह गाँव को छोड़कर चला जाता है | लेकिन इस घटना ने एक नास्तिक व्यक्ति को, आस्था से जोड़ दिया था, जो कि कुलदेवी का ही प्रताप था |