कुंभ मेला (kumbh mela) Dharmik kahani:
कुंभ मेला । kumbh mela कहानी होने के साथ साथ धर्म से जोड़ने वाली, धार्मिक कहानी भी है | हिन्दू सनातन धर्म में, कुंभ मेले का बहुत महत्व है, जिसके लिए लाखों श्रद्धालु, भारत के चुनिंदा पवित्र स्थानों में जाकर, नदी में स्नान करते हैं, जिनमें से एक जगह प्रयागराज भी है | प्रयागराज में इस वर्ष भव्य मेले का आयोजन होने वाला था, जिसके लिए, भक्तों का ताँता लगा हुआ था और उन्हीं भक्तों के बीच, एक विदेशी महिला भी थी, जो कि केवल घूमने के उद्देश्य से, कुंभ मेला में सम्मिलित हुई थी, लेकिन उसे क्या पता कि, इस कुंभ मेले से उसका जीवन बदल जाएगा | महिला का नाम डायना था | वह विदेशी संस्कृति में पली बढ़ीं और वही उसने शादी करके, अपना परिवार बसाया और अब जब, बच्चे बड़े हो गए तब वह, देश विदेश अकेले ही यात्राएं करने लगी | इस बार वह प्रयागराज आ चुकी थी | डायना ने प्रयागराज पहुँचने से पहले, होटल में कमरा बुक कर दिया था, इसलिए पहुँचते ही, उसे कमरा मिल जाता है | डायना नहाकर, तैयार हो जाती है और होटल में नाश्ता करने के बाद, अपना कैमरा लेकर कुंभ मेले में शामिल होने के लिए, निकल पड़ती है, लेकिन प्रयागराज के रास्तों में श्रद्धालुओं का झुंड लगा हुआ था | भीड़ देखकर डायना आगे जाने की हिम्मत नहीं कर पा रही थी | अचानक डायना को, एक अघोरी दिखाई देते हैं, जो अर्ध नग्न अवस्था में, सफ़ेद विभूति से रंगे हुए दिखाई दे रहे थे |
डायना को उन्हें देखकर, उनकी फ़ोटो खींचने का विचार आता है | वह अघोरी के पास पहुँच जाती है और अपना कैमरा चालू करके, उनके सामने खड़ी हो जाती है और जैसे ही वह फ़ोटो खींचती है, वह आश्चर्यचकित हो जाती है, क्योंकि अघोरी कैमरे से दिखाई नहीं दे रहे होते | डायना कुछ अंदाजे से कुछ फ़ोटो खींचती है, लेकिन अघोरी का प्रतिबिंब फ़ोटो में नज़र नहीं आता | डायना को लगता है कि, उसके कैमरे में कोई ख़राबी हो गई होगी, इसलिए वह चैक करने के लिए, कुछ आने जाने वाले लोगों की भी तस्वीर खींचती है, लेकिन उनकी तस्वीर साफ़ साफ़ दिखाई दे रही होती है, तो फिर अघोरी में ऐसा क्या था जो, उनकी तस्वीर नहीं आ रही थी | डायना अघोरी के पास जाकर उनसे बात करना चाहती है, लेकिन अघोरी भक्तों की भीड़ में, आगे बढ़ते जाते हैं | डायना भी उनका पीछा करने लगती है और धीरे धीरे आगे बढ़ती जाती है | डायना को अघोरी रहस्यमयी लगने लगे थे | वह उनके बारे में जानने के लिए उत्सुक थी | थोड़ा दूर चलते ही डायना का पैर फँस जाता है और वह गिर जाती है और जैसे ही, उठकर खड़ी होती है, तो देखती है कि, अघोरी उसकी आँखों से ओझल हो चुके थे | उसे बहुत बुरा लगता है, क्योंकि उसने आज तक इतना रहस्यमयी इंसान नहीं देखा था | तभी डायना, उसी दिशा में चारों तरफ़ देखते हुए आगे बढ़ती रहती है | कुंभ मेला अपना आकार बढ़ाते जा रहा था | श्रद्धालु नदी के घाटों में, अपना डेरा जमा चुके थे | डायना भी सँभलते हुए, गंगा नदी के घाट पर आ जाती है | चारों तरफ़ लोग ही लोग, दिखाई दे रहे थे, लेकिन डायना की नज़र तो, सिर्फ़ अघोरी को ही ढूंढ रही थी | तभी क़िस्मत से डायना को अघोरी फिर से नज़र आते हैं, लेकिन वह नदी के दूसरी तरफ़, एक पत्थर पर बैठे हुए थे | डायना अपने बग़ल में खड़े, एक व्यक्ति से अघोरी की तरफ़ इशारा करके कहती है कि, “वह बाबा वहाँ कैसे पहुँचे” लेकिन उस व्यक्ति को वहाँ कोई नज़र नहीं आ रहा था | वह डायना को अनसुना करके, वहाँ से चला जाता है | डायना नदी के दूसरी तरफ़ जाना चाहती थी, इसलिए वह एक नाव को किराये पर लेती है और उस पर बैठकर, नदी के दूसरे किनारे पहुँच जाती है और उसी पत्थर के पास पहुँच जाती है, जहाँ अघोरी बैठे हुए थे | अघोरी ने अपनी आंखें, बंद कर रखी थी और ध्यान में मग्न थे | तभी डायना, उनसे पूछती है, “आप कौन हैं ? आँखें खोलिए” | अचानक अघोरी, अपनी आंखें खोलते हैं और उन्हें देखते ही डायना डर जाती है, क्योंकि उनकी आंखें सुर्ख़ लाल दिखाई दे रही थी | आँखों में खून उतरा हुआ था और भृकुटी तनीं हुई थी | अघोरी ऊँचे स्वर में कहते हैं, “तुम यहाँ से चली जाओ” | वह अघोरी से बात करना चाहती थी, लेकिन वह हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी | डायना के दिमाग़ में अघोरी को जानने की उथल पुथल चल रही थी | अघोरी अपने क्रोधी बर्ताव से डायना को दहशत दे चुके थे | डायना अघोरी के सामने बैठ जाती है और कहती है, “जब तक आप अपने बारे में कुछ नहीं बताएँगे, मैं यहाँ से नहीं जाऊँगी” | डायना की तीव्र इच्छा की वजह से, अघोरी का ह्रदय परिवर्तन हो जाता है और वह डायना के सर में हाथ रखकर, पल भर में उसे, अपने बारे में सब कुछ बता देते हैं | डायना आंखें खोलती हैं और वह शून्य हो जाती है |
उसे अपनी ज़िंदगी की सभी बातें, तुच्छ लगने लगती है | उसने ज़ो जीवन जिया था, वह किसी जानवर की तरह, नज़र आने लगता है, क्योंकि डायना सत्य को समझ चुकी थी | डायन ने, अघोरी की शक्ति से देख लिया था, कि और भी ख़ूबसूरत जीवन है, जिससे हम वंचित है और अब डायना भी, वह पाना चाहती थी | डायना अघोरी के पैरों में गिर जाती है और उन्हें कहती है, “आप मुझे भी अपनी तरह बना दीजिए” | अघोरी कहते हैं, “नामुमकिन, यह साधना महिलाओं के लिए नहीं हैं और इसमें, अपने जीवन को त्यागकर, सत्य के मार्ग को अपनाना पड़ता है, जिसमें सांसारिक जीवन से जुड़ी हुई, विषयवस्तु से सारे रिश्ते ख़त्म करने होते हैं | क्या तुम इतना त्याग कर सकोगी” ? डायना मन बना चुकी थी कि, वह अब अघोरी की तरह ही जीवन जिएगी इसलिए, वह पूरे आत्मविश्वास से अघोरी की शिष्या बनने को तैयार हो जाती है | अघोरी कोई इंसान नहीं बल्कि एक शक्ति थे, वह किसी भी तरह के वातावरण में रहने में सक्षम थे, लेकिन डायना तो, एक साधारण महिला है | वह इनके साथ साधना करने योग्य नहीं थी, इसलिए वह डायना के लिए उन्हीं पत्थरों के बीच में, अपनी चमत्कारी शक्ति से, एक छोटी सी गुफा का निर्माण कर देते हैं और डायना के वस्त्रों को बदल कर, उसे वैराग्य की भेस भूषा में ले आते हैं और जैसे ही डायना पत्थर के ऊपर साधना के लिए बैठती है तो, नदी के दूसरी तरफ़ कुछ लोगों को, डायना एक देवी रूप में नज़र आने लगती है और कुंभ मेला में शामिल भक्त, डायना के दर्शन करने के लिए उतावले हो जाते हैं | एक के बाद एक, कई नाव नदी पार करके दूसरी तरफ़ पहुँच जातीं हैं |
श्रद्धालुओं की भीड़, डायना की गुफा की तरफ़ बढ़ने लगती है | अचानक डायना की आंखें खुलती है तो अघोरी उसके सामने से ग़ायब हो चुके थे और बहुत से लोग हाथ जोड़कर सामने खड़े हुए थे | डायना को समझ में नहीं आता कि वह इतनी महान कैसे बन गई कि, लोग उसे एक देवी समझने लगे जबकि, वह एक साधारण महिला थी लेकिन यही कुंभ मेला का प्रताप था, जिसने डायना का जीवन बदल दिया और उसकी बेरंग ज़िंदगी में भक्ति का रंग घोल दिया था |
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