त्रिशूल (shiva trishul story in hindi)- dharmik kahaniyan hindi mein:
भगवान भोलेनाथ के त्रिशूल की महिमा से पूरा विश्व परिचित है, लेकिन आज भी पुरातत्व विभाग द्वारा शिव के त्रिशूल पर शोध की जा रही है और इसी से प्रेरित होकर, भोलेनाथ के त्रिशूल की महिमा का चित्रण, धार्मिक काल्पनिक कहानी के रूप में किया गया है| मुझे पूरा विश्वास है कि, यह कहानी आपको शिव के त्रिशूल की शक्तियों से अवगत कराएगी| एक बहुत ही पुराना गाँव था, जहाँ बहुत से प्राचीन खंडहर बने थे और इन खंडहरों में कई वर्षों से पुरातत्व वैज्ञानिक रिसर्च के लिए आया करते थे| वैज्ञानिकों को इस गाँव से, हिन्दू संस्कृति से जुड़ी कई प्राचीन वस्तुएँ प्राप्त हुई थी, इसीलिए यह गाँव प्राचीन हिन्दू सभ्यताओं की खोज के केंद्र के रूप में जाना जाता था, लेकिन उनकी खोज अभी तक अधूरी थी, क्योंकि वह धार्मिक ग्रंथों में बताए गए, अस्त्र शस्त्रों की खोज में लगे हुए थे| एक बार उसी गाँव के मैदान में, बच्चे फ़ुटबॉल खेल रहे होते हैं, अचानक उनकी फ़ुटबॉल एक गड्ढे के अंदर चली जाती है| गड्ढा काफ़ी गहरा था, इसलिए बच्चों की हिम्मत, उस गड्ढे के अंदर जाने की नहीं हो रही थी, तभी गांवों मे एक फेरीवाला, कपड़े बेचने आता है| बच्चे उसे रोक लेते हैं और उससे अपनी फ़ुटबॉल निकालने की ज़िद करने लगते हैं| फेरीवाला बच्चों की ज़िद मानकर, गड्ढे के अंदर घुस जाता है| अंदर बहुत अंधेरा था, जिस वजह से उसे कुछ दिखाई नहीं दे रहा था| वह अंदाज़े से नीचे उतरता जा रहा था, अचानक उसका पैर फिसल जाता है और वह गड्ढे के अंदर जाकर फँस जाता है| फेरी वाला दर्द से चीख उठता है और उसकी आवाज़ सुनकर, आस पास के लोग, गड्ढे के पास जमा हो जाते हैं और सभी उसे निकालने की कोशिश करने लगते हैं|
फेरी वाला किसी चीज़ से अटक गया था और उसके पैर की हड्डी टूट चुकी थी, जिसके कारण वह खड़ा नहीं हो पा रहा था| उसे निकालने के लिए, सरकारी बचाव दल को बुलाया जाता है| बचाव दल के अधिकारी, इलेक्ट्रिक गैजेट्स के साथ, गड्ढे अंदर प्रवेश करते हैं| उनके पास तेज रोशनी की टॉर्च होती है, जिससे वह गड्ढे के अंदर सभी चीज़ों को साफ़ साफ़ देख पा रहे थे| वह जितने नीचे उतरते जा रहे थे, उतना उन्हें साँस लेने में परेशानी हो रही थी| जैसे ही वह फेरीवाले के क़रीब पहुँचते हैं| फेरीवाला एक बहुत बड़े लोहे के स्तंभ में फँसा होता है| अधिकारी उसे बड़ी मुश्किल से रेस्क्यू करके, गड्ढे के बाहर ले आते हैं| लेकिन गड्ढे के अंदर लोहे का स्तंभ, उन्हें विचलित कर रहा था, क्योंकि गड्ढे के आस पास कोई घर नहीं था, फिर इतना बड़ा लोहा कहाँ से आया? वह लोहे को बाहर निकालने का फ़ैसला करते हैं, लेकिन यह क्षेत्र पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आता था, इसलिए यहाँ उपस्थित किसी भी खनिज को, बिना उनके अनुमति के नहीं लिया जा सकता था| बचाव दल की अधिकारी पुरातत्व विभाग को बुलावा भेजते हैं और जैसे ही वह इस लोहे के स्तंभ की जाँच करते हैं, तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं होता, क्योंकि यह चीज़ लोहे से नहीं, बल्कि अंतरिक्ष के ग्रहों में उपस्थित, विभिन्न प्रकार की खगोलीय धातुओं से बना हुआ, स्तंभ प्रतीत हो रहा था, जो कि पृथ्वी में इकलौता था| उस धातु के गहन अध्ययन से उन्हें इस बात का एहसास हो चुका था कि, यह ज़रूर हिन्दू संस्कृति से संबंधित कोई विशाल अस्त्र हो सकता है| स्तंभ का आकार बहुत विशाल था, जिसे निकालने के लिए बड़ी बड़ी मशीनें लगायी जाती है और स्तंभ को निकालने की, जद्दोजहद शुरू हो जाती है| उस गड्ढे के आस पास हज़ारों की तादाद में लोग जमा हो जाते हैं| सभी उत्सुकता से गड्ढे की तरफ़ देख रहे थे| खनिज विभाग के अधिकारी पूरी मशक़्क़त के साथ स्तंभ को निकालने में लगे होते हैं| खुदाई करते हुए 38 घंटे गुज़रते ही, अचानक स्तंभ का आख़िरी छोर इनके हाथ लग जाता है और जैसे ही हाइड्रोलिक मशीन की सहायता से, स्तंभ को बाहर खींचा जाता है, वहाँ उपस्थित लोग जय भोलेनाथ के नारे लगाने लगते हैं, क्योंकि यह स्तंभ भोलेनाथ के त्रिशूल की तरह प्रतीत हो रहा था, जिसकी पुष्टि पुरातत्त्व वैज्ञानिकों द्वारा की जाती है| वैज्ञानिकों के हाथ में बहुत बड़ी सफलता लगती है, क्योंकि वह हिंदु संस्कृति के प्रतीकों का शोध कई वर्षों से कर रहे थे और उन्हें आज तक इतना बड़ा, जीता जागता उदाहरण नहीं मिला था, लेकिन आज उनकी यह खोज पूरी हो चुकी थी| त्रिशूल को अनुसंधान केन्द्र में ले जाया जाता है| त्रिशूल मिलने की ख़बर से पूरे विश्व में जिज्ञासा पैदा हो चुकी थी| सभी जानना चाहते थे, कि त्रिशूल वाक़ई भोलेनाथ का है या यह कोई सामान्य ढांचा है| त्रिशूल की रिसर्च करने के लिए कई देशों से वैज्ञानिकों को आमंत्रित किया जाता है| सभी अपने अपने स्तर से, त्रिशूल की कई पैमानों में जाँच करते हैं और जब फ़ाइनल रिपोर्ट आती है तो, वैज्ञानिकों में ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ती है, क्योंकि यह हज़ारों वर्ष पुराना भोलेनाथ का ही त्रिशूल लग रहा था, क्योंकि इससे जुड़ी जानकारियां इस बात को प्रमाणित कर रही थी कि, यह पृथ्वी में उपस्थित किसी भी धातु से नहीं बना था, बल्कि अंतरिक्ष में उपस्थित विभिन्न प्रकार की चट्टानों के मिश्रण से इसका निर्माण हुआ था, जो कि अपने आप में अद्भुत अकल्पनीय था|
वैज्ञानिक त्रिशूल मिलने की खुशियाँ मना रहे थे, अचानक प्राकृतिक वातावरण बदलने लगता है| गर्मी के मौसम में चारों तरफ़ ज़ोरदार बारिश प्रारम्भ हो जाती है| मौसम विभाग की जानकारी के अनुसार वर्षा अनिश्चित कारणों की वजह से प्रारंभ हुई थी, जिसके बारे में मौसम विभाग को कोई जानकारी नहीं लग रही थी और तो और, सैटलाइट से भी बारिश से संबंधित कोई संकेत प्राप्त नहीं हो पा रही थे| वैज्ञानिकों में उथल पुथल मच चुकी थी, क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था कि, प्राकृतिक घटनाओं का अवलोकन करने में, उन्हें परेशानी हो रही थी| उन्हीं वैज्ञानिकों में एक ऐसे भारतीय वैज्ञानिक भी थे जो, धार्मिक ग्रंथों की जानकारी रखते थे| तभी उन्हें अंदेशा होता है कि, शायद इस त्रिशूल की वजह से मौसम का परिवर्तन हुआ है| वह सभी से कहते हैं, “कहीं ऐसा तो नहीं कि, यह त्रिशूल जिस जगह पर उपस्थित था, उसी वजह से प्राकृतिक संतुलन बना हुआ था और हमने त्रिशूल को उसकी जगह से हटाकर, इस संतुलन को बिगाड़ दिया”| भारतीय वैज्ञानिक की वजह से, त्रिशूल के बारे में बहुत सी जानकारियां इकट्ठा हुई थी, इसलिए सभी वैज्ञानिक, इनकी इस बात को, गंभीरता से लेते हैं और त्रिशूल को वापस उसी जगह ले जाने का फ़ैसला करते हैं, जहाँ से वह इसे निकाल कर लाए थे और दोबारा मशीनों की मदद से, त्रिशूल को उठाने का प्रयास किया जाता है, लेकिन त्रिशूल का वज़न बढ़ चुका था और बड़ी बड़ी मशीनों से भी, त्रिशूल को हिला पाना संभव नहीं हो पा रहा था| वैज्ञानिक चिंतित हो जाते हैं| उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था, क्यों कि यह त्रिशूल इन्हीं मशीनों की मदद से लाया गया था और अब यह हिलने का नाम नहीं ले रहा| तभी भारतीय वैज्ञानिक सलाह देते हैं कि, त्रिशूल शक्ति का प्रतीक है और इसे यहाँ से हटाने के लिए, भगवान भोलेनाथ का आह्वान करना होगा, तब शायद भोलेनाथ हमारी पुकार सुनेंगे| शिवपूजा को सम्पन्न करने के लिए, एक पुरोहित बुलाए जाते हैं जो, भोलेनाथ की संपूर्ण पूजा विधि का आयोजन करते हैं और इसी दौरान, त्रिशूल अपने आप हिलने लगता है| उसे हिलता देख, वैज्ञानिक हाइड्रोलिक मशीन से त्रिशूल को उठाने का आदेश देते हैं और अगले ही पल, त्रिशूल एक पेड़ के पत्ते की तरह उठ जाता है| शिव की महिमा देखकर, सभी वैज्ञानिक दंग रह जाते हैं| सभी हाथ जोड़ते हुए, भोलेनाथ को प्रणाम करते हैं और जैसे ही त्रिशूल को गड्ढे में वापस, प्रवेश करवाया जाता है, अचानक बारिश रुक जाती है| वैज्ञानिक अब समझ चुके थे कि, हमें भी प्राकृतिक चीज़ों को बिना उनका स्थान परिवर्तन किए ही शोध करना होगा, अन्यथा इस पृथ्वी का अस्तित्व ही नहीं रहेगा और इसी के साथ, शिव के रहस्यमय त्रिशूल का क़िस्सा ख़त्म हो जाता है|