Shiv Mahima | शिव महिमा (bhagwan ki kahani):
शिव यानी महाकाल, भोलेनाथ, शम्भु, नीलकंठ और न जाने ऐसे कितने नामों से पुकारें जाने वाले, शिव की महिमा के बहुत से क़िस्से, धार्मिक किताबों में मिलते हैं| शिव आदि हैं और अंत भी| अर्थात शिव सृष्टि के कण कण में विद्यमान् है| शिव महिमा (Shiv Mahima) से कोई व्यक्ति अछूता नहीं है और इसी चमत्कार को, चित्रित करने के लिए, यह कहानी(bhagwan ki kahani) लिखी गई है जो, आपको धार्मिक ज्ञान के सागर में स्नान करने को विवश कर देगी| एक शहर था, जहाँ बहुत बड़ा मंदिर था| मंदिर में भक्तों का ताँता हमेशा लगा रहता था| मंदिर के आने जाने वाले रास्ते में, धार्मिक सामग्री बिक्री हेतु छोटी छोटी दुकानें लगी हुई थी और उन्हीं दुकानों में, एक दुकान ओंकार की थी| वह शिव का अटूट भक्त था| वह कई घंटों शिव की पूजा में लगा रहता था| दुकान में वह और उसका छोटा बैठा करते थे| उसका बेटा कार्तिक जो कि, केवल आठ वर्ष का था हालाँकि कार्तिक दुकान के काम के साथ साथ, अपनी पढ़ाई में भी बराबर ध्यान देता था, जिस वजह से वह अपनी सभी कक्षाओं में, अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होता आया था| ओंकार अपने बेटे से बहुत प्यार करता था| ओंकार की पत्नी, कार्तिक को जन्म देते ही दुनिया छोड़ चुकी थी| बचपन से कार्तिक को, ओंकार ने माँ और बाप दोनों का प्यार दिया था| कार्तिक अपने पिता का आज्ञाकारी बेटा था| वह घर के काम के साथ साथ दुकान का भी काम संभाल लेता था| उनकी ज़िंदगी बहुत मज़े से चल रही थी, लेकिन एक दिन नगर निगम का ऐलान होता है कि, मंदिर परिसर से, सभी दुकानें हटायी जाएंगी| इसका सीधा मतलब था, जिसकी स्वयं की ज़मीन होगी, वही यहाँ धंधा कर सकता था| ओंकार अपने घर में पूजा कर रहा था|
जैसे ही उसे यह बात पता चलती है| उसके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है, क्योंकि मंदिर परिसर की वह दुकान, उसकी रोज़ी रोटी थी और उस दुकान के अलावा, उसके पास आमदनी का कोई और ज़रिया नहीं था| वह तुरंत भगवान शिव के सामने, बेसुध होकर लेट जाता है| ओंकार की आँखों में आँसू आ जाते हैं और वह शिव भगवान से कहता है, “क्यों दे रहे हो, मुझे इतनी तक़लीफ़, प्रभु! क्या मैंने कोई पाप किए थे”? कुछ देर बाद, ओंकार शिव भगवान के सामने, हाथ जोड़कर खड़ा होता है और अपनी दुकान की तरफ़ भागता है| सभी दुकानदारों को, दुकान से सामान ख़ाली करने के लिए, एक दिन का समय दिया जाता है| जिसके लिए लाउडस्पीकर से, लगातार सारे मंदिर परिसर में, सरकारी ऐलान होता रहता है| सरकार के इस फ़ैसले का, सभी विरोध कर रहे होते हैं, लेकिन मंदिर में भक्तों की संख्या, बढ़ने की वजह से, रोड का चौड़ीकरण करना अनिवार्य था| हालाँकि प्रशासन ने मंदिर से थोड़ा दूर, एक सरकारी ज़मीन में, दुकानें बनाने की इजाज़त दे दी थी| लेकिन उन ज़मीनों को लीज़ पर दिया जाना था और लीज़ की रक़म, लगभग ज़मीन की क़ीमत के बराबर ही पहुँच रही थी, जो कि ओंकार की पहुँच से बाहर थी| ओंकार दुकान के अलावा, कुछ और काम नहीं कर सकता था, इसलिए वह लीज़ पर ज़मीन लेने के लिए, आवेदन भर देता है और दो ही दिनों के अंदर, उसे 35 प्रतिशत राशि जमा करवाने का नोटिस मिलता है| उसने कई सालों से, दुकान से पैसे कमा कर जोड़े थे, इसलिए उसके पास लगभग, आधी राशि तो उपलब्ध थी, इसलिए वह दो दिन के अंदर 35 पर्सेंट रक़म जमा करवा देता है और बाक़ी का बचा हुआ 15 दिनों के अंदर जमा करवाने का समय दिया जाता है| ओंकार अपने बेटे से कहता है कि, “बेटा हमें ये ज़मीन, कुछ भी करके लेना होगा| मेरे पास आधे ही पैसे हो पा रहे हैं, बाकि पैसों के लिए, हम बैंक से लोन ले लेते हैं”| कार्तिक उम्र में छोटा ज़रूर था, लेकिन वह बहुत समझदार था| वह अपने पिता की बात से सहमत हो जाता है| ओंकार अपने बेटे को लेकर, बैंक पहुँच जाता है और प्रबंधक के पास जाकर, लोन के लिए आवेदन देता है|
बैंक प्रबंधक उससे कहते हैं कि, “हम आपको बैंक लोन तभी दे सकते हैं, जब कोई ऐसा व्यक्ति, आपकी गारंटी दें, जिसका खाता हमारे बैंक में हो”| ओंकार इस बैंक से संबंधित, किसी व्यक्ति को नहीं जानता था| वह यहाँ पहली बार आया था| ओंकार हताश हो जाता है और वह बैंक के बाहर, सर में हाथ रखकर बैठ जाता है| तभी उसके पास एक व्यक्ति, तिलक लगाएं पहुँचता है| वह कार्तिक को एक चॉकलेट देता है और ओंकार से पूछता है, “क्या बात है, आप परेशान लग रहे हैं”? ओंकार अपनी समस्या उसके सामने रख देता है| तभी वह व्यक्ति कहता है, “बस इतनी सी बात है| चलिए मैं आपकी गारंटी देता हूँ| मेरा भी खाता इसी बैंक में है”| यह बात सुनते ही, ओंकार के चेहरे में चमक आ जाती है| वह जल्दी से, अपने काग़ज़ लेकर बैंक के अंदर दोबारा चल देता है| ओंकार अंदर पहुंचकर, बैंक प्रबंधक के सामने गारंटी के तौर पर, इसी व्यक्ति को प्रस्तुत कर देता है और सारी प्रक्रिया होते ही, ओंकार को बैंक से लोन मिल जाता है| लोन मिलते ही, वह भोले बाबा को प्रणाम करता है और ज़मीन का पंजीकरण करवाने के लिए, राशि नगर निगम में जमा कराने पहुँच जाता है| राशि जमा होते ही, ओंकार को ज़मीन दे दी जाती है| दो दिनों के अंदर, ओंकार लकड़ी की दुकान बनवा लेता है| ओंकार दुकान के अंदर, सबसे पहले शिव की मूर्ति स्थापित करता है और इसके बाद, अपने धंधे की शुरुआत कर देता है| उसे लोन चुकाने का टेंशन खाए जा रहा था| ओंकार की दुकान, सबसे आख़िरी में थी, इसलिए उसकी दुकान में कम ग्राहक पहुँचा करते थे| वह इतना भी पैसा नहीं कमा पा रहा था कि, उसके प्रतिदिन के ख़र्चे पूरे हो सकें| ओंकार परेशान रहने लगा| एक दिन उसकी दुकान में, वही व्यक्ति फिर से आते हैं, जिन्होनें बैंक में उसे लोन की गारंटी दी थी| उन्हें देखते ही, ओंकार अपनी दुकान में बैठने को कहता है और जल्दी से उनके लिए चाय नाश्ते का इंतज़ाम करता है और जैसे ही, वह व्यक्ति ओंकार से उसकी दुकान के हाल चाल पूछते हैं तो, वह अपना दुखड़ा रोने लगता है| वह व्यक्ति शिव की मूर्ति को नीचे रखे देख, ओंकार से कहते हैं, “तुमने शिव भगवान को, ऐसे क्यों स्थापित किया है| उनके लिए छोटा सा मंदिर बना लो| तुम्हारा कल्याण हो जाएगा” और इतना कहकर, वह वहाँ से चले जाते हैं| ओंकार उस व्यक्ति के जाते ही, अपने काम में लग जाता है| एक दो महीने के अंदर, ओंकार की हालत बदतर होने लगती है| वह कर्ज़ में डूबता जा रहा था, लेकिन इसके बावजूद, वह शिव की पूजा में उतना ही समय देता था, जितना हमेशा से देता आया था| एक दिन वह थोड़ा जल्दी दुकान पहुँच जाता है और दुकान की साफ़ सफ़ाई करने लगता है| ओंकार को अचानक उस व्यक्ति की बात याद आती है कि, शिव के लिए छोटा सा मंदिर बना लो| तभी ओंकार कुछ मज़दूरों को बुलाकर, दुकान के कोने में छोटा सा मंदिर बनवाने के लिए गड्ढा खुदवाने लगता है, लेकिन बहुत प्रयास करने के बाद भी, उस जगह पर गड्ढा नहीं हो रहा होता और जब मिट्टी हटाकर मज़दूर देखते हैं तो, वह दंग रह जाते हैं| उन्हें एक विशाल शिवलिंग का ऊपरी हिस्सा दिखाई दे रहा होता है और जैसे ही वह किनारे किनारे मिट्टी हटाते हुए, गहराई तक जाते हैं तो, सभी के पसीने छूट जाते हैं, क्योंकि यह कोई साधारण शिवलिंग नहीं था| इसका आकार बहुत विशाल था और इसका पत्थर फ़ौलाद से भी मज़बूत था|
शिवलिंग निकलते ही दुकान के चारों तरफ़ से, हज़ारों लोगों की भीड़ जमा हो जाती है| दूर दूर से लोग वहाँ शिवलिंग देखने पहुँच जाते हैं| शिव की इतनी बड़ी मूर्ति, ज़मीन के अंदर से निकलते ही, खनिज विभाग के लोग, उसे ज़ब्त कर लेते हैं| शिवलिंग को मंदिर की संपत्ति मानकर, मंदिर में स्थापित कर दिया जाता है, लेकिन मूर्ति निकलने की वजह से, ओंकार की दुकान की क़ीमत, आसमान छूने लगती है| सभी ग्राहक उसी दुकान से सामान लेने के लिए लाइन लगाने लगते हैं| दरअसल लोग उस ज़मीन को, शिव जन्मभूमि का अंश समझने लगे थे| शिव महिमा (Shiv Mahima) ने ओंकार का जीवन बदल दिया था और इसी के साथ यह कहानी (bhagwan Shiv ki kahani) समाप्त हो जाती है|
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