हवन कुंड | Hawan Kund | dharmik katha:
हिन्दू सनातन धर्म में, हवन कुंड (Hawan Kund) का अद्भुत महत्व है | हवन कुंड (Havan Kund) आहुतियां के लिए बनाया जाता है, लेकिन हवन कुंड (Hawan Kund) की आहुतियों का उद्देश्य अलग अलग हो सकता है | धर्म के इनकी तथ्यों से, यह धार्मिक कहानी (dharmik katha) हवन कुंड के महत्व को उजागर करेगी | प्राचीन काल में एक बहुत बड़ा राज्य था | उस राज्य में धन की निरंतर कमी बनी रहती थी | राज्य में कोई श्रेष्ठ राजा तो नहीं था | हाँ छोटे मोटे जमींदार, अपने अपने स्तर पर, राज किया करते थे | राज्य के अंदर, आने वाले सभी गांवों की व्यवस्था निरंतर बदतर होती जा रही थी | ग़रीबी की वजह से, लोगों को दैनिक जीवन में समस्याएं उत्पन्न होने लगी | खाने पीने की चीज़ों की भारी कमी आ चुकी थी, जिसकी वजह से लोग कीड़े – मकोड़े, साँप – बिच्छू तक खाने लगे | एक रात एक बुजुर्ग सड़क पर तड़प रहा था | रास्ते से दो व्यक्ति गुज़रते हुए, उसे देख लेते हैं | वह तुरंत उसकी मदद के लिए, उसके पास पहुँच जाते हैं, लेकिन जैसे ही वह, उसे हाथ लगाते हैं, दोनों ही उसी तरह तड़पने लगते हैं और देखते देखते, कुछ घंटों में ही उनकी दर्दनाक मौत हो जाती है | रात भर सड़क पर तीनों लावारिस पड़े रहते हैं | सुबह होते ही उन तीनों के आजू बाज़ू, लोगों की भीड़ लग जाती है | तभी दो लोग उन्हें उठाने जाते हैं, लेकिन ये दोनो भी, किसी बीमारी से ग्रसित होकर, तड़पने लगते हैं | राज्य में एक अनजान महामारी ने, अपने क़दम रख दिए थे | दोनों को तड़प कर मरते देख, किसी की हिम्मत उनके पास जाने की नहीं होती | सभी घबराकर, इधर उधर भागने लगते हैं | प्राचीन काल में, राज्य के गाँवों में वैद्य हुआ करते थे | संयोग से पास ही, एक वैद्य जी की कुटिया थी | सभी वैद्य जी के पास जाकर, मरे हुए लोगों की जानकारी देते हैं | वैद्य जी भागते हुए उसी स्थान पर पहुँच जाते हैं, जहाँ वह मृत अवस्था में पड़े थे | महामारी के चलते, वह उनके नज़दीक नहीं जाना चाहते थे | तीनों का शरीर काला पड़ चुका था, जिससे वैद्य जी को आभास हो रहा था कि, यह कोई ज़हरीली वायु का प्रभाव है और हो ना हो, यह वातावरण प्रदूषित हो रहा है | वैद्य जी सभी को अपना चेहरा कपड़े से ढकने को कहते हैं | महामारी अपरिचित थी, जिसके बारे में अभी तक, किसी को कोई जानकारी नहीं थी | वैद्य जी शास्त्रों की मदद से, इस महामारी के उपचार का पता लगाने की कोशिश करते हैं |
उन्हें शास्त्रों में एक जगह, प्रदूषित वायु को शुद्ध करने के लिए, हवन कुंड का ज़िक्र मिलता है | जिसमें बताया जाता है कि, वायु में तरह तरह के विषाणु विद्यमान होते हैं, जिन्हें नष्ट करने के लिए, विभिन्न प्रकार की लकड़ियां से हवन किया जाना चाहिए, जिसके प्रताप से, वायु में उत्पन्न विष, पृथक हो जाएगा और वायु प्रवाह पुनः, निर्मल होने लगेगा | धीरे धीरे करके कई गांव से, इसी तरह इंसानों और जीव जन्तुओं के मृत्यु की ख़बर आने लगी | आम लोगों में खलबली मच चुकी थी | सभी का जीवन वायरस से प्रभावित हो रहा था | गाँव के मुखिया सभी को इकट्ठा करके एक सभा लगाते हैं | संकट की इस घड़ी में, चर्चा के लिए वैद्य जी को आमंत्रित किया जाता है, ताकि उनसे इस महामारी से लड़ने का उपाए पूछा जा सके | वैद्य जी ने शास्त्रों की सहायता से, यह तो पता लगा लिया था कि, वायु को शुद्ध करने के लिए, हवन करना उपयुक्त होगा था, लेकिन इस वायरस को नष्ट करने के लिए, किस पेड़ की लकड़ियों का इस्तेमाल किया जाएगा, यह वैद्य जी नहीं जान पाए थे | वैध जी के सामने बड़ी दुविधा थी | अभी उन्हें संपूर्ण जानकारी नहीं थी, इसलिए वह गाँव के मुखिया से खुलकर, सब कुछ कह देते हैं | सभी सोच में पड़ जाते हैं | अचानक गाँव के मुखिया, वैद्य जी से कहते हैं, “क्यों न हम हवन कुंड में इस्तेमाल की जाने वाली सभी लकड़ियों का एक समूह बनाकर हवन करें” ? वैध जी को, मुखिया की यह सलाह अच्छी लगती है | और वह शास्त्रों में बताइ गई सभी लकड़ियों को लाने का कार्य, गाँव वालों को सौंपते हैं | कुछ लकड़ियाँ तो आसानी से प्राप्त हो जाती है |
लेकिन कुछ ऐसी दुर्लभ लकड़ियाँ भी थीं, जिन्हें प्राप्त करने के लिए पहाड़ की ऊंचाइयों तक जाना पड़ेगा, जिसके लिए बहुत समय लगेगा | तभी वैध जी को एक विचार आता है | यदि पहाड़ के ऊपर जाकर हवन किया जाए तो, आस पास के सारे गाँव की जलवायु शुद्ध होगी, जिससे और भी अतिशीघ्र समस्या का समाधान होगा | वैध जी मुखिया से कहते हैं, “हम पहाड़ी के ऊपर सबको लेकर चलें और वही हवन कुंड की स्थापना करके हवन करें तो, पूरे राज्य की जलवायु शुद्ध की जा सकती है | यह बात सुनते ही, सभी के चेहरे में सकारात्मकता आ जाती है | मुखिया तुरंत सभी से अपनी बैलगाड़ी तैयार करने को कहते हैं, ताकि बच्चों और बुजुर्गों को भी पहाड़ के ऊपर ले जाया जा सके | जैसे ही यह ख़बर फैलती है, आस पास के कई गांवों के लोग, बैल गाड़ियों की लंबी लंबी कतारें लगातार, पहाड़ के रास्ते चल देते हैं | पहाड़ के ऊपर पहुँचते ही, एक विशाल गड्ढा खोदा जाता है, जिसके लिए कई लोगों की मेहनत लगती है और 12 घंटों के बाद, एक हवन कुंड का निर्माण हो जाता है | गाँव की आधी आबादी, पहाड़ के ऊपर आ चुकी थी | सभी हवन कुंड की सामग्री, इकट्ठा करने लगे थे, लेकिन लकड़ियाँ हवन कुंड में रखना एक चुनौतीपूर्ण कार्य था, क्योंकि हवन कुंड इतना विशाल था कि, पाँच हाथी भी समा जाए | हवन कुंड के अंदर, कई लोग उतरकर लकड़ियाँ व्यवस्थित रखने लगते हैं और जैसे ही, कार्य पूर्ण हो जाता है तो, वैद्य जी नीचे उतरकर, कुछ मंत्रों के उच्चारण के साथ, अग्नि प्रज्जवलित कर देते हैं | कुछ ही क्षणों में आग का रूप विकराल हो जाता है और हवन कुंड की आग का धुआँ धीरे धीरे वातावरण में फैलने लगता है |
धुएं से लोगों को साँस लेने में परेशानी महसूस हो रही थी, लेकिन हवन कुंड (Hawan Kund) का धुआँ लोगों की श्वास नली को पवित्र कर रहा था | इस हवन कुंड (Hawan Kund) की आग, कई दिनों तक धधकती रहती है, जिससे राज्य के सभी गाँवों से महामारी का वायरस नष्ट हो जाता है | इतने बड़े संकट से मुक्त होते ही, गाँव वालों के चेहरों में ख़ुशी आ जाती है | लोगों के सर से मौत का ख़ौफ़ ख़त्म हो जाता है | आज भी कई धार्मिक इतिहासों में, आधुनिक बीमारियों से लड़ने की विधियाँ लिखी हुई है, सिर्फ़ सही समय पर उनका उपयोग सीखना बाक़ी है | हवन कुंड (Hawan Kund) के प्रताप से, सभी को नया जीवन प्राप्त हो चुका था|
जीव, जन्तु और मनुष्य सभी खुलकर, हवा में साँस ले पा रहे थे | इस घटना के बाद घर घर में हवन कुंड (Havan Kund) की स्थापना की गई और आज भी घरों में रोज़ाना यह प्रथा चली आ रही है |
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कुंभ मेला। kumbh mela | Dharmik kahani